अध्यात्म क्या-क्यों-कैसे?

अध्यात्म क्या-क्यों-कैसे?

अध्यात्म संसार के सबसे रोचक और कठिन रहस्यों में से एक हैं। विकीपीडिया के अनुसार, "आध्यात्म ईश्वरीय उद्दीपन की अनुभूति प्राप्त करने का एक दृष्टिकोण है, जो धर्म से अलग है।" इसे एक भौतिक वास्तविकता के अधिगम के रूप में उल्लिखित किया गया है। एक आंतरिक मार्ग जो एक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के सार की खोज में सक्षम बनाता है।

अध्यात्म क्या-क्यों-कैसे?


अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है, स्वयं का अध्ययन (अध्ययन-आत्म)।
वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार, इसका तात्पर्य यह है कि जो अपना भाव अर्थात प्रत्येक जीव की एक-एक शरीर पृथक - पृथक सत्ता है, वही अध्यात्म है।

सद्गुरु के शब्दों में "यह प्रक्रिया जन्म और मृत्यु के बारे में नहीं है। यह कुछ ऐसा तैयार करने के बारे में है, जिसे मृत्यु भी न छीन सके।"

(ख) आध्यात्मिक शिक्षा क्या है?
स्वयं को जानना ही आध्यात्मिक शिक्षा के अंतर्गत आता है। यह इंसान को भौतिकवाद को समाप्त करने की सीख देती है।

अध्यात्म क्या-क्यों-कैसे?

आध्यात्मिक विकास का अर्थ मानव जीवन की परिपक्वता से लिया जाता है। जिसमें दो तथ्य महत्वपूर्ण है, स्वयं का जानना तथा मानवता का विकास।

(ग) अध्यात्म व धर्म में अंतर क्या भेद है?

अध्यात्म स्वयं को जानने का एक तरीका या माध्यम है, जबकि धर्म एक विश्वास है और एक देवता की पूजा का माध्यम।

(घ) आध्यात्मिक कैसे बने?

आध्यात्मिक पद को अपनाने का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है, कि आपकी जिंदगी की स्थिति संघर्ष पूर्ण होने पर भी आपके लिए हार की स्वीकृति का कोई नकारात्मक परिणाम नहीं हो सकता।

(ड़) अध्यात्म से ज्ञान प्राप्ति कैसे होती है?

प्राचीन धर्मावलंबियों के द्वारा यह कहा कहा जाता रहा है, कि भगवान स्वयं अपने भक्तों को तत्व ज्ञान प्राप्त कराने के लिए सच्चे गुरु की व्यवस्था कर देते हैं। यह पूर्व से चली आ रही सत्य को प्राप्त करने की परंपरा है। इसके अतिरिक्त इधर उधर भटकने से जीव अपनी ही हानि करता रहेगा, इसलिए साधक को चाहिए कि वह भ्रमित ना हो।

अध्यात्म क्या-क्यों-कैसे?

अध्यात्म और धर्म में काफी अंतर है, लेकिन कुछ धार्मिक लोग अपनी आत्म संतुष्टि की पूर्ति हेतु अध्यात्म को धर्म से प्रमाणित एवं अध्यात्म से अंतर्संबंध करने का निरर्थक एवं अतार्किक प्रयास करते रहते हैं।

निष्कर्ष:-
अध्यात्म सदा से ही समय की प्राथमिक आवश्यकता रहा है। भौतिकवाद में डूबा मानव सदा से ही संसार को जानना चाहता है। अध्यात्मा हमारे भ्रम को तोड़ता है, और हमें सत्य की अनुभूति कराता है। अध्यात्म जीवन को जीने का एक व्यवहारिक तरीका है, जो हमारे आंतरिक जीवन को समृद्ध बनाने के साथ-साथ हमारे आपसी संबंधों को भी बेहतर बनाता है।

मानवता से परिपूर्ण एवं आध्यात्मिक स्तर के उच्च शिखर पर पहुंच चुकी श्री मां कहती है कि,
"मैं किसी राष्ट्र की, किसी सभ्यता की, किसी समाज की, किसी जाति की नहीं हूं, मैं भगवान की हूं।"
"मैं किसी स्वामी, किसी शास्त्र, किसी कानून, किसी सामाजिक प्रथा का हुकुम नहीं मानती सिर्फ भगवान का हुक्म मानती हूं।"

संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1- वेद पुराण एवं उपनिषद्
2- बौद्ध एवं जैन धर्म ग्रंथ
3- विकिपीडिया
4- इंटरनेट
5- द्वितीय स्त्रोत
6- अग्नि शिखा (फ़रवरी 2021)

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

नोट:- हमारी सभी पाठकों से विनती है, कि इस लेख को अध्यात्म संबंधी ज्ञान के लिए अनंतिम सत्य न समझे। अध्यात्म एक विस्तृत रहस्यमय विषय है, जिसे एक लेख में लिपिबद्ध कर पाना असंभव है। हमने आपको इस विषय पर अनुसंधान कर सूक्ष्म जानकारी प्रदान की है। इस विषय पर अभी और अनुसंधान किया जाना बाकी है।

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