धर्म क्या-क्यों-कैसे?

धर्म क्या-क्यों-कैसे?

आधुनिक संसार में धर्म संभवत: इंसान के उत्थान एवं पतन व उन्नति एवं अवनति के लिए जिम्मेदार है। किसी छेत्र विशेष के लोगों के बीच में सामाजिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता बनाए रखने में धर्म अहम रोल निभाता है। तमाम बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता और विद्वान धर्म का प्रयोग अपने व्यक्तिगत व सामूहिक उन्नति के लिए करते हैं। किसी विद्वान ने कहा है कि, ''उच्च शिक्षित एवं अशिक्षित लोगों की अपेक्षा अल्प शिक्षित (अर्धज्ञानी) लोग धर्म का अंधानुकरण अधिक करते हैं। चाहे उसके सिद्धांत गलत ही क्यों ना हो।''

धर्म कौन-क्या-कैसे?

इस लेख को पढ़ने के पश्चात संभवत आपके व्याकुल मस्तिष्क को निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा:-


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। एक बड़े सामाजिक समूह को एकता के सूत्र में बांधकर रखने में धर्म व राजनीति का अहम योगदान होता है। आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के प्रचलन के बाद धर्म के प्रति लोगों का झुकाव कुछ कम सा हुआ है।

समाज के अधिकांश लोगों के बीच सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता बनाए रखने के लिए कुछ सामूहिक सिद्धांतों, नैतिक नियमों एवं ईश्वर रूपी आस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए धर्म का होना अत्यावश्यक माना जाता है।

विकिपीडिया के अनुसार ''धर्म भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है 'धारण करने योग्य' अर्थात 'जिसे सब को धारण करना चाहिए', हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन धर्म ना होकर संप्रदाय या समुदाय मात्र है। संप्रदाय एक परंपरा के मानने वालों का समूह है।''

मजूमदार एवं मदान के अनुसार ''धर्म किसी भौतिक वस्तु अथवा शक्ति का मानवीय परिणाम है, जो पारलौकिक व इंद्रियों से परे हैं। यह व्यवहार की अभिव्यक्ति तथा अनुकूलन का रूप है, जो लोगों को अलौकिक शक्ति की धारणा से प्रभावित करता है।''

(ख) धर्म की उत्पत्ति कब हुई?

अलग-अलग धार्मिक पुस्तकों एवं विद्वानों का इस प्रश्न पर अलग-अलग मत है। वैदिक धर्म को छोड़कर सभी धर्म नए प्रतीत होते हैं। मानव विकास के प्रारंभिक काल अर्थात पुरापाषाण काल में धर्म एवं ईश्वर नामक कोई भी विचार विद्यमान नहीं था। पाषाण कालीन आदिमानव ने भित्ति चित्र के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित की थी। धर्म की उत्पत्ति एवं प्रचार-प्रसार बहुत बाद की कहानी है।

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार धर्म रूपी जादू-टोने की शुरुआत पाषाण युगीन कंद्राओं से हुई, क्योंकि वर्षा के समय चमचमाती बिजली को आदिमानव कोई दिव्य घटना ही समझते होंगे। क्योंकि इससे जनधन की हानि होती होगी।

(ग) धर्म की उत्पत्ति क्यों हुई?

धर्म की उत्पत्ति के साथ-साथ इसकी स्थापना एवं प्रमाण को सही सिद्ध करने के कारण पुरोहित वर्ग समाज में सर्वोच्च स्थान पा गया। पुरोहित वर्ग ही ईश्वर एवं धर्म के विषयों के बारे में प्रारंभिक जानकारी रखते थे। उन्हीं ने लोगों को धार्मिक विचारों को मानने के लिए प्रेरित अथवा बाध्य किया होगा।

एक बड़े राज्य का संचालन करने के लिए भी धर्म की आवश्यकता पड़ी, क्योंकि धर्म के माध्यम से लोगों को एक जगह इकट्ठा करना सबसे सस्ता और आसान तरीका था।

तत्कालीन कारणों की वजह से धर्म की उत्पत्ति एवं प्रचार प्रसार हुआ, तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था इसके लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार थी।

(घ) धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई?

हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं, कि लोगों की सामाजिक व राजनीतिक एकता के लिए धर्म नामक संस्था की उत्पत्ति एवं विकास हुआ। लेकिन बाद में धर्म ही कुछ लोगों के शोषण का प्रमुख माध्यम बनाया गया। प्रत्येक धर्म का कोई न कोई ईश्वर है, और ईश्वर के रहने के लिए एक घर की आवश्यकता थी। पुरोहित वर्ग (जादू - टोना, तंत्र - मंत्र करने वाले) ने धार्मिक स्थल के रूप में मंदिर रूपी कुछ धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया। कालांतर में वे मंदिर ही तत्कालीन राजनीति, समाज और शिक्षा का प्रमुख केंद्र बने। प्रमुख आर्थिक गतिविधियां भी इनके आसपास होती थी।

(ड) दुनिया में कुल कितने धर्म है?

दुनिया में अनेक धर्म है, धार्मिक अनुयायियों की संख्या के अनुसार हिंदू, इसाई व इस्लाम सबसे बड़े एवं बाकी अनेक छोटे धर्म प्रचलित है। अधिकांशतः प्रत्येक देश में कोई न कोई मुख्य धर्म है, जिसका वहां की राजनीति, समाज, संस्कृति व शिक्षा में दखल या प्रभाव है। दुनिया के कुछ देश उदारवादी भी है। वहां के नागरिक किसी धर्म या ईश्वर में विश्वास नहीं करते, क्योंकि वैज्ञानिक खोजों और प्रौद्योगिकी के विकास के प्रति जागरूक लोगों की ईश्वर में रूची कम हुई है।

(च) संसार का सबसे ताकतवर, अच्छा या बुरा धर्म कौन सा है?

हम किसी भी धर्म को अच्छा या बुरा नहीं कह सकते क्योंकि प्रत्येक धर्म की कोई न कोई विशेषता है। अधिकांशतः धर्म बुरा या भला नहीं होता बल्कि उसके सिद्धांत अथवा उद्देश्य अच्छे या बुरे हो सकते हैं। प्रत्येक जगह की सामाजिक व्यवस्था वहां के धर्म से अवश्य प्रभावित होती है। धर्म में पाखंड या अंधविश्वास के सम्मिलित होने से उसके अनुयायियों में रोष उत्पन्न हो सकता है। जिससे अधिकांश लोगों के धर्मांतरण या नास्तिकता की ओर बढ़ जाने की संभावना होती है।

उपसंहार:- इस लेख में हमने जाना कि धर्म एक ऐसी संस्था है, जो एक क्षेत्र विशेष के लोगों को भावनात्मक एवं आस्था के द्वारा जोड़े रखती है। किसी भी देश की सामाजिक उन्नति में वहां के धर्म का प्र्भाव होता है। गहन शोध उपरांत हमने पाया है, किकिसी भी कट्टर धार्मिक देश के समाज में अव्यवस्था पाई जाती है। वर्तमान में धर्म का स्वरूप भी बदल रहा है। लोग धर्म की अपेक्षा संविधान को ज्यादा अहमियत देने लगे हैं, क्योंकि संविधान सभी मनुष्यों को एक समान मानते हुए तथाकथित उच्च वर्गीय समाज के विशेष अधिकारों पर अंकुश लगाता है।

संदर्भ ग्रंथ सूची: - 
  1. वेद, पुराण एवं उपनिषद
  2. बौद्ध एवं जैन धर्म ग्रंथ
  3. विकिपीडिया
  4. इंटरनेट
  5. द्वितीयक स्त्रोत।
  6. धर्म क्या है?
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

नोट:- समस्त जानकारी को हमने सूक्ष्म अनुसंधान के बाद तैयार एवं प्रस्तुत किया है। इस लेख में हमने अनेक प्राथमिक एवं द्वितीयक स्त्रोतों का प्रयोग किया है। हमारी वेबसाइट किसी भी धर्म के अच्छा या बुरा होने का समर्थन नहीं करती क्योंकि यह प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तिगत अधिकार है, कि वह किस धर्म एवं विचारधारा को अपना कर अपने जीवन के लक्ष्यों की पूर्ति करना चाहता है।

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